બીજી મીણબત્તીને જ્યોત આપવામાં પ્રથમ મીણબત્તીએ કાંઈ ગુમાવવાનું નથી, પણ તેના કામમાં એક સાથીદાર મળશે.
Sunday, February 19, 2017
The Truth of Life
Thursday, February 16, 2017
अनुभव
Suvichar
*रिश्ते*
Life
किस्मत
Life
Tuesday, February 14, 2017
*क्या हम कभी भगवान को धन्यवाद देने मंदिर गये है.?*
एक अमीर आदमी था, उसने अपने गांव के सब गरीब लोगों के लिए और भिखारिओं के लिए माह-वारी (प्रतिमाह) दान बांध दिया था।
किसी को दस रुपये मिलते महीने में तो किसी को बीस रुपये मिलते तो किसी को पचास रुपये।
सभी लोग हर महीने की एक तारिख को आकर अपने पैसे ले जाते थे, यह क्रम वर्षो से ऐसा चल रहा था।
एक भिखारी था जो बहुत ही गरीब था और जिसका बडा परिवार था, उसे 50 रुपये हर महीने मिलते थे।
वह हर महीने की एक तारीख को आकर अपने पैसे ले जाता था।
एक बार महीने की एक तारीख आई, वह बूढा भिखारी रुपये लेने गया।
लेकिन उस धनी सेठ के मैनेजर ने कहा कि:- भाई थोडा अदल-बदल हुआ है, अब से तुम्हें पचास रुपये की जगह सिर्फ पच्चीस रुपये मिलेंगे।
यह सुनकर भिखारी बहुत नाराज हो गया, उसने कहा:- क्या मतलब, मुझे तो हमेशा से पचास रुपये मिलते रहे हैं।
और बिना पचास रुपये लिए मैं यहाँ से नहीं हटुंगा, क्या वजह है पचास की जगह पच्चीस देने की?
मैंनेजर ने कहा कि:- जिनकी तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं उनकी बेटी का विवाह है, और उस विवाह में बहुत खर्च होने वाला है।
और यह विवाह कोई साधारण विवाह नहीं है, उनकी एक ही बेटी है लाखों का खर्च है।
इस वजह से अभी सम्पत्ति में थोडी असुविधा है, इसलिए अब आपको पचास की जगह पच्चीस ही मिलेंगे।
उस भिखारी ने गुस्से से टेबल पर हाथ पटके और कहा:- इसका क्या मतलब, तुमने मुझे क्या समझ रखा है, मैं कोई बिरला नहीं हूँ?
मेरे पैसे काटकर और अपनी लडकी की शादी?
अगर अपनी बेटी की शादी में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओं।
पिछले कई सालो से उस बुढे भिखारी को पचास रुपये मिलते आ रहे है, इसलिए वह आदी हो गया है, अधिकारी हो गया है, वह अनको अपने मानने लगा है।
उसमें से पच्चीस काट लेने पर उसका विरोध है।
हमें जो मिला है जीवन में, उसे हम अपना मान रहे है।
उसमें से आधा कटेगा तो हम विरोध तो करेंगे, लेकिन जो हमे अब तक मिला है जो अपना नहीं था वह मिला और क्या हमने इसके लिए कभी धन्यवाद भी दिया है।
इस भिखारी ने कभी उस अमीर आदमी के पास जाकर धन्यवाद तक नही दिया की तुम पचास रुपये महीने हमें देते हो इसके लिए धन्यवाद, लेकिन जब कटे तो विरोध किया।
जरा विचार करे:- क्या हम कभी सुख के लिए भगवान को धन्यवाद देने मंदिर गये है?
शायद हीं किसी का जबाब हां होगा...
हम सभी अधिकतर बस दु:ख की शिकायत लेकर ही मंदिर गये है।
जीवन जैसे सुंदर उपहार के लिए हमारे मन में कोई धन्यवाद नहीं है, लेकिन मुत्यु के लिए बडी शिकायत।
सुख के लिए कोई धन्यवाद नहीं है, लेकिन दु:ख के लिए बहुत बडी शिकायत।
जब भी हमने भगवान को पुकारा है तो कोई न कोई पीड़ा या दु:ख के लिए।
क्या हमने कभी धन्यवाद देने के लिए भगवान को पुकारा है?
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय॥
कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान को याद करते हैं, पर सुख में कोई भी भगवान को याद नहीं करता।
यदि सुख में भी भगवान को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों।