Tuesday, July 12, 2016

हरिवंशराय बच्चन की* _*एक सुंदर कविता

-हरिवंशराय बच्चन की
एक सुंदर कविता ...

*खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।*
*आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।*


*अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे।*
*क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।*


*ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है*
*शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!*


*एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,*
*जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,*
*और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।*


*बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...*
*क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..*



*मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,*
*चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।*



*ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है*




*जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने*
*न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.*



*एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..*
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!*



*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..*
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!*



*सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....*
*बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |*



*जीवन की भाग-दौड़ में क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?*
*हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..*



*एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम*

*_और_*

*आज कई बार*
*बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..*



*कितने दूर निकल गए,*
*रिश्तो को निभाते निभाते..*
*खुद को खो दिया हमने,*
*अपनों को पाते पाते..*




*लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,*
*और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..*



*"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,*
*लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..*



*मालूम है कोई मोल नहीं मेरा*


*_फिर भी,_*


*कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ...

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