दुःख में स्वयं की
एक ऊँगली ही आंसू पोछती है,
और सुख में
दसो उंगलिया ताली बजाती है,
जब अपना शरीर ही ऐसा करता है,
तो दुनिया का गिला शिकवा
क्या करना।
एक ऊँगली ही आंसू पोछती है,
और सुख में
दसो उंगलिया ताली बजाती है,
जब अपना शरीर ही ऐसा करता है,
तो दुनिया का गिला शिकवा
क्या करना।
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