Monday, April 11, 2016

घंउ खावाथी शरीर फुले,
ने जव खावाथी जुले,
मगने चोखा ना भूले,
तो बुद्धि ना बारणा खुले....

घंउने तो परदेशी जाणुं,
जव छे देशी खाणुं,
मग नी दाळ ने चोखा मळे,
तो लांबु जीवि जाणुं....

गायना घी मां रसोई रांधो,
तो शरीर नो मजबूत बांधो,
ने तलना तेलनी मालीशथी,
दुखे नहीं अेकेय सांधो....

गायनुं घी छे पीळु सोनुं,
ने मलाई नुं घी चांदी,
हवे वनस्पति घी खाइने,
थाय सारी दुनिया मांदी...

मग कहे हुं लीलो दाणो,
ने मारे माथे चांदु ,
बे-चार महीना मने खाय,
तो माणस उठाडु मांदु....

चणो कहे हूं खरबचडो,
मारो पीळो रंग जणाय,
जो रोज पलाळी मने खाय,
तो घोड़ा जेवा थाय....

रसोई रांधे जो पीतळमां,
ने पाणी उकाळे तांबु ,
जे भोजन करें कांसामां,
तो जीवन माणे लांबु....

घर घर मां रोगना खाटला,
ने दवाखाना मां बाटला,
फ्रीज ना ठंडा पाणी पी ने,
भूली गया छे माटला....

पूर्व ओशिके विधा मळे,
दक्षिणे धन कमाय,
पश्चिमे चिंता उपजे,
उतरे हानि थाय.....

उंधो सुवे ते अभागीयो,
चतो सुवे ते रोगी ,
डाबे तो सहु कोई सुवे,
जमणे सुवे ते योगी.....

आहार अेज अौषध छे,
त्यां दवानुं शुं काम,
आहार विहार अज्ञानथी,
दवाखाना थया छे जाम....

रात्रे वहेला जे सुवे,
वहेला उठे ते विर,
प्रभु भजन पछी भोजन,
कहेवाय अे नरविर.....

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